25 मार्च 2018

काश तुम होती ।

नीरज सिंह
दिल्ली विश्वविद्यालय

काश तुम होती

सड़कों पर चलता तो हूँ
अगर तुम साथ होती तो सफ़रनामा बन जाता

सिगरेट पीने से आज-कल सभी रोकने लगे हैं मुझे
गर तुम रोकती तो बात अलग होती

चाय के साथ अक्सर धुँआ ही उड़ा रहा हूँ
अगर चाय तुम्हारे हाथों की होती तो बात कुछ और होती

याद आती हैं तुम्हारी जब हम अकेले होते हैं
साथ न छोड़ा होता तो बात ही कुछ और होती

रातों को नींद में 
दिनों में रूह में तुम ही होती हो
दूर न होती तो बात ही अलग थी

वो बात-बात पर गुस्सा होना तुम्हारा
वो गुस्सा अगर प्यार से करती तो बात ही अलग थी

वो सफ़ेद कुर्ता अभी भी पहनता हूँ
बस उस पर तुम्हारे बाहों की खुश्बू होती तो बात ही अलग थी ।

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