नीरज सिंह
आज सुबह उठा तो एक बड़ा ही दुःखद समाचार सुना कि बलिया के महान कवि और लेखक अब नहीं रहें । केदारनाथ जी को पढ़ कर मैंने कविताएं लिखनी शुरू की
बहुत कुछ सीखा हैं उनसे । दरअसल वो मरे नहीं हैं हमारे बीच मे हैं हमारे यूपी के हर नोजवान की सासों में हैं आप उन्हें महसूस कर सकते हैं
उनके ऊपर कुछ लाइन लिखी हैं 😞
हमें कही मत ढूंढना
न बलिया में, न बलिया की उन प्यारी-प्यारी सड़को पर
न ही खेतों में , न किसी बगीचों में
न उस छत जहाँ बैठ के पूरे जग को समझा !
मैं नही मिलूँगा तुम्हें बनारस के घाटों पे
न उन में बह रहे सीतल जलो में
न उस जल पर चल रही नाव में
न बनारस के हवाओं में
और न ही उड़ रही उस आवारा पंछी में !
हमें मत ढूंढना कहि
बलिया के स्टेशन पर
वहां बने हजारी प्रसाद जी के पुस्तकालय में
स्टेशन पर बैठें किसी गरीब माँ के आँचलो में
वहाँ जो पेड़ हैं उनके सूखे पत्तों पर !
बलिया से जो सड़क बिहार जाती हैं
उस पर नहीं मिलूँगा में
गंगा जी के तीरे नहीं बैठूंगा में
निमिया के गछिया पर
रस पीने नहीं आऊंगा में !
बलिया से बनारस इसके बीच नहीं आऊँगा में
गाजीपुर में जाकर कविताएं नहीं लिखूंगा में
फेफना में धान के खेतो में नहीं उगुगा में
औड़िहार के पकौड़ो नही चखने आऊँगा में
सारनाथ में घूमते नहीं दिखूंगा में
ट्रेन चले या न चले
बलिया से बनारस के बीच उनकी हवाओं में नहीं उड़ने आऊंगा में !
बोल देना मेरे चाहने वालों को
भूल जाए हमें
में अब न आ पाउँगा
में उन्हीं में अपने आप को छोड़ के जा रहा हूँ
वो रोए न मुझे याद करके बोलना उन्हें
उनके आँसुओ में आऊंगा में .......।
आज सुबह उठा तो एक बड़ा ही दुःखद समाचार सुना कि बलिया के महान कवि और लेखक अब नहीं रहें । केदारनाथ जी को पढ़ कर मैंने कविताएं लिखनी शुरू की
बहुत कुछ सीखा हैं उनसे । दरअसल वो मरे नहीं हैं हमारे बीच मे हैं हमारे यूपी के हर नोजवान की सासों में हैं आप उन्हें महसूस कर सकते हैं
उनके ऊपर कुछ लाइन लिखी हैं 😞
हमें कही मत ढूंढना
न बलिया में, न बलिया की उन प्यारी-प्यारी सड़को पर
न ही खेतों में , न किसी बगीचों में
न उस छत जहाँ बैठ के पूरे जग को समझा !
मैं नही मिलूँगा तुम्हें बनारस के घाटों पे
न उन में बह रहे सीतल जलो में
न उस जल पर चल रही नाव में
न बनारस के हवाओं में
और न ही उड़ रही उस आवारा पंछी में !
हमें मत ढूंढना कहि
बलिया के स्टेशन पर
वहां बने हजारी प्रसाद जी के पुस्तकालय में
स्टेशन पर बैठें किसी गरीब माँ के आँचलो में
वहाँ जो पेड़ हैं उनके सूखे पत्तों पर !
बलिया से जो सड़क बिहार जाती हैं
उस पर नहीं मिलूँगा में
गंगा जी के तीरे नहीं बैठूंगा में
निमिया के गछिया पर
रस पीने नहीं आऊंगा में !
बलिया से बनारस इसके बीच नहीं आऊँगा में
गाजीपुर में जाकर कविताएं नहीं लिखूंगा में
फेफना में धान के खेतो में नहीं उगुगा में
औड़िहार के पकौड़ो नही चखने आऊँगा में
सारनाथ में घूमते नहीं दिखूंगा में
ट्रेन चले या न चले
बलिया से बनारस के बीच उनकी हवाओं में नहीं उड़ने आऊंगा में !
बोल देना मेरे चाहने वालों को
भूल जाए हमें
में अब न आ पाउँगा
में उन्हीं में अपने आप को छोड़ के जा रहा हूँ
वो रोए न मुझे याद करके बोलना उन्हें
उनके आँसुओ में आऊंगा में .......।