25 मार्च 2018

बिहार दिवस

नीरज सिंह
दिल्ली विश्वविद्यालय

बिहार से दिल्ली होखे
अउरी बैग में सतुआ के लिटी होखे
बाबू जी के दिहल कुछु पईसा होखे
ओहि पईसावा में लउकत बाबू जी के बड़का बन के आई
ई बोले वाला बतिया होखे
माई के हथवा से बुनल ऊन के सुइटर होखे
बड़का बहिनिया के बेगवा से चुराईल एगो दुगो कल्मवा होखे 
आपन गइया के दुधवा से बनल एक डब्बा घी होखे
ट्रेनवा चाहे कउनो होखे
खाली बनारस से होके दिल्ली जात होखे
लकठो ओमें बेचात होखे
दिल्ली में अइसन बात होखे
रात से सुबह तक ख़ाली अंजोरिया रात होखे
अउरी रोज दाल चावल चोखा बनत होखे
आम के आचार आपन लोटवा अमवा के पेड़वा के होखे
तब का बिहार अउर दिल्ली होखे
रोज मजा कटाई अगर अइसन बिहारी वाली बात होखे...।

काश तुम होती ।

नीरज सिंह
दिल्ली विश्वविद्यालय

काश तुम होती

सड़कों पर चलता तो हूँ
अगर तुम साथ होती तो सफ़रनामा बन जाता

सिगरेट पीने से आज-कल सभी रोकने लगे हैं मुझे
गर तुम रोकती तो बात अलग होती

चाय के साथ अक्सर धुँआ ही उड़ा रहा हूँ
अगर चाय तुम्हारे हाथों की होती तो बात कुछ और होती

याद आती हैं तुम्हारी जब हम अकेले होते हैं
साथ न छोड़ा होता तो बात ही कुछ और होती

रातों को नींद में 
दिनों में रूह में तुम ही होती हो
दूर न होती तो बात ही अलग थी

वो बात-बात पर गुस्सा होना तुम्हारा
वो गुस्सा अगर प्यार से करती तो बात ही अलग थी

वो सफ़ेद कुर्ता अभी भी पहनता हूँ
बस उस पर तुम्हारे बाहों की खुश्बू होती तो बात ही अलग थी ।

23 मार्च 2018

आपको हँसने का हुनर रखते हैं ।

जयदीप कुमार
आपके जख्मो को खरीदने का हुनर रखते है
आपके दर्द को मिटाने का हुनर रखते है.
मेरे आँखों में भले आँसुओ का सागर हो
लेकिन आपको हँसाने का हुनर रखते है.

20 मार्च 2018

हमे कही मत ढूढ़ना ।

नीरज सिंह
आज सुबह उठा तो एक बड़ा ही दुःखद समाचार सुना कि बलिया के महान कवि और लेखक अब नहीं रहें । केदारनाथ जी को पढ़ कर मैंने कविताएं लिखनी शुरू की
बहुत कुछ सीखा हैं उनसे । दरअसल वो मरे नहीं हैं हमारे बीच मे हैं हमारे यूपी के हर नोजवान की सासों में हैं आप उन्हें महसूस कर सकते हैं
उनके ऊपर कुछ लाइन लिखी हैं 😞

हमें कही मत ढूंढना
न बलिया में, न बलिया की उन प्यारी-प्यारी सड़को पर
न ही खेतों में ,  न किसी बगीचों में
न उस छत जहाँ बैठ के पूरे जग को समझा !

मैं नही मिलूँगा तुम्हें बनारस के घाटों पे
न उन में बह रहे सीतल जलो में
न उस जल पर चल रही नाव में
न बनारस के हवाओं में
और न ही उड़ रही उस आवारा पंछी में !

हमें मत ढूंढना कहि
बलिया के स्टेशन पर
वहां बने हजारी प्रसाद जी के पुस्तकालय में
स्टेशन पर बैठें किसी गरीब माँ के आँचलो में
वहाँ जो पेड़ हैं उनके सूखे पत्तों पर !

बलिया से जो सड़क बिहार जाती हैं
उस पर नहीं मिलूँगा में
गंगा जी के तीरे नहीं बैठूंगा में
निमिया के गछिया पर
रस पीने नहीं आऊंगा में !

बलिया से बनारस इसके बीच नहीं आऊँगा में
गाजीपुर में जाकर कविताएं नहीं लिखूंगा में
फेफना में धान के खेतो में नहीं उगुगा में
औड़िहार के पकौड़ो नही चखने आऊँगा में
सारनाथ में घूमते नहीं दिखूंगा में
ट्रेन चले या न चले
बलिया से बनारस के बीच उनकी हवाओं में नहीं उड़ने आऊंगा में !

बोल देना मेरे चाहने वालों को
भूल जाए हमें
में अब न आ पाउँगा
में उन्हीं में अपने आप को  छोड़ के जा रहा हूँ
वो रोए न मुझे याद करके बोलना उन्हें
उनके आँसुओ में आऊंगा में .......।

19 मार्च 2018

महाराणा प्रताप की वीरता पर श्याम नारायण पांडेय की कविता

कविता पाठ- आकाश सिंह

जिससे मैंने प्यार किया ।- प्रभात

जिससे मैनें प्यार किया , वो प्यार नही एक सपना था
प्यार के बदले धोखा दिया , इंसान कहाँ वो अपना था
रह कर उसकी यादो में देखु ,उसकी  निगाहों को
रुका खड़ा हूँ उसी राह पर  जहाँ मुझे वह छोड़ गई
उसके प्यार में पड़ कर अपनी असलियत को  भूल गया
जिससे मैन प्यार किया , वो प्यार नही एक सपना था

तुम ही मुझके ऐसे मिले, कोई और नहीं  हैं तुम्हारे जैसा
उसने तोड़ दिया रिश्ता,  खुद को समझाना कैस
सच्चे प्यार में पड़कर जाना, इतना कहां मालूम था
जिससे मैनें प्यार किया , वो प्यार नही एक सपना था

गाता गाता चल पड़ा हूँ, तन्हाई ले ख्वाबों में
प्रेम से मैंने लिख दी है, दबी हुई भावनाओं को
तुमसे ही क्यों प्यार हुआ, दिल से इतना क्यों चाहा था-

23 फ़रवरी 2018

बलिदान


कुमुद सिंह

आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी रही होगी उस लड़की की जिसने उसे बिना सोचे समझे अपनी आगे की पूरी ज़िंदगी एक अधेड़ आदमी के साथ गुज़ारने पर बेबस कर दिया???????

क्या वो इतनी नादान रही होगी की उसे अपनी इच्छायें भी ज्ञात नहीं थीं या फिर उसके आगे ऐसे दो विकल्प रख दिए गए होंगे जो दो होकर भी एक ही हो(जैसा कि अकसर होता है) या फिर उस लड़की के घरवालों ने उसकी खुशियो का गला घोंट कर,उसके रूह को तड़पता छोड़ कर कुछ चंद रूपयों के लिए उसके तन का सौदा कर दिया होगा या फिर गरीबी और दहेजप्रथा के चंगुल से बचने के लिए उसे अपनी इच्छओं और खुशियो का बलिदान देना पड़ा होगा....
खैर, सच्चाई का तो इल्म मुझे नहीं है बस इतना कहूंगी की बलिदान सिर्फ हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने ही नहीं दिया है बल्कि ये तो हर रोज़ दिया जा रहा है पूरे देश भर में हज़ारों लड़किओ द्वारा बस अन्तर इतना है कि उन्होंने देश में पनप रही बुराइयों को घुटने टिकाने के लिए तन का बलिदान दिया था और आज हम बुराइयों के आगे घुटने टेक कर मन का बलिदान देते है।
#बलिदान

मेरे पिता जी

लेखक - प्रभात
शीर्षक- मेरे पिता जी
वक्ता- प्रभात

19 फ़रवरी 2018

हिन्दू कोड बिल

मो गुफरान खान
सम्पर्क सूत्र   7054171363
             डॉ भीमराम आंबेडकर मिशन पर आहंग थिएटर ग्रुप द्वारा  नाटक हिन्दू कोड बिल  डॉ. हिरण्य हिमकर के निर्देशन और लेखन में 20-01-2018 को प्रस्तुत किया गया था अभी हालहिं में अश्मिता थिएटर ग्रुप ने भी हिन्दू कोड बिल नाटक का राकेश कुमार के निर्देशन में मंचन किया  मैंने दोनों नाटक को देखा आहंग द्वारा प्रस्तुत हिन्दू कोड बिल उस समय की बिडम्बनापुर्ण छुआछूत सामाजिक स्थिति को दर्शाता है  इस विषय को लेकर नाटक का ताना बाना बुना गया  एक तरफ महिलाओं शुद्रजाति पर ब्राह्मणों  धनी वर्ग वा सियासतदां द्वारा किए गए अत्याचार बिधवा पुनर विबाह वर्जित जैसी स्थिति को  2 घंटे के नाटक में बखूबी पेश किआ गया वहीं दूसरी ओर धर्म जाति समाज (खासतौर से महलाओं)रक्षा उसमे ऊर्जा भरने का काम किया  नाटक को गंभीर और काल्पनिक विषयवस्तु के साथ तथ्यात्मक  विचारात्मक और व्यंगग्यात्मक अभिव्यक्ति के बीच एक संतुलन में पेश किया गया ताकि बकैती न बन जाये पात्रों की संख्या अधिक होने के कारण एक दो कलाकारों को एक से अधिक भूमिका भी  निभानी पड़ी सभी कलाकारों ने पूरी मेहनत लगन से नाटक को सफल बनाने में जीजान लगा दी और अपने किरदार को बखूबी निभाया पूरा ऑडोटोरियम तालियों से गूंज उठा कलाकारों का मन उल्लास से भर दिया  नाटक अंत तक पहुँचते पहुँचते ऐसी स्थिति का भी परिणाम सामने आया सदन में बैठे लोगों की पलके नम गो गयी कुछ ऊँची जाति के लोग आके दलित समाज की महिलाओं के  साथ  बलात्कार करतें है उनको मरते  पीटते इनको घरों को बिरान कर देते हैं ऐसी स्थिति को भी नाटक में दर्शाया गया है वहीं मशहूर अश्मीता थिएटर ग्रुप का भी नाटक  हिन्दू कोड बिल देखने का सौभग्य प्राप्त हुआ नाटक राकेश कुमार जी के निर्देशन में प्रस्तुत किया गया नाटक  के कंटेंट से ज़्यादा नाटक की प्रॉपर्टीज़ पर    ध्यान दिया गया महिलाओं और छुआछुत ऐसी स्थिति पर बल देने के बजाये नाटक में आंबेडकर जी के प्रेमप्रसंग पर ज़्यादा बल दिया गया  इक्का दुक्का छोटी छोटी घटनाओं को और इतहास का सहारा लेकर उसकी तारीख़ को ही प्रस्तुत किया गया                 

15 फ़रवरी 2018

लोग मुझे शराबी समझने लगे ।

नीरज सिंह
दिल्ली विश्वविद्यालय
हा मुझे लोग शराबी समझने लगे हैं क्योंकि !
क्योंकि मुझ से नहीं होता औरो की तरह झूठा प्रेम जताना !
नहीं आता मुझ एक शब्दों का अनेक भेद बताना !
नहीं आता मुझे ऐसे आँसू बहाना
जो सिर्फ मतलब पर निकलते हैं !
नहीं आता मुझे माँ से झूठ बोलना नहीं आता पिता जी से आँख लड़ाना !
नहीं आता वो कार्य जो एक समाज से हटके हो !
नहीं आती वो रात अब जो इस दिल को बेहलती हो !
नहीं गा पाता मैं गीत तराने
नहीं केह पाता झूठे फ़साने !
मूझे नहीं आती हैं अब हर वो चीजें करनी जो मतलबी हो ।
शायद इस लिए लोग मुझे शराबी समझने लगे हैं ........!

भारतीय सिनेमा

  कहा जाता है कि सिनेमा समाज का दर्पण होता है समाज की संस्कृति को बताने का एक माध्यम होता है समाज में बदलाव लाने का काम करता है वास्तव में स...