27 जनवरी 2021

भारतीय सिनेमा

 


कहा जाता है कि सिनेमा समाज का दर्पण होता है समाज की संस्कृति को बताने का एक माध्यम होता है समाज में बदलाव लाने का काम करता है वास्तव में सिनेमा वही है जो समाज को आईना दिखाएं और उसकी विविधता और संस्कृति को बनाए रखें और समाज के हर तबके के लोगों को वैसे ही चित्र करें जैसे में होते हैं ऐसे में सिनेमा ऐसा काम तभी कर सकती है जब वहां की भाषा ज़ी सिनेमा का भागबन करके उन लोगों तक पहुंच सके इसलिए क्षेत्रीय सिनेमा के दौर में लगभग हर भाषा में फिल्में बनाई जा रही इसी तरीके से भोजपुरी फिल्म उत्तर पूर्वी और बिहार के लोगों के लिए उनके रहन-सहन खानपान और उस समाज की स्थिति संस्कृति पेश कर पूरे देश में ही नहीं पूरे विश्व में लोगों के सामने एक संदेश भेज सकती है इन सब चीजों को ध्यान में रखें तो ऐसे में सिनेमा पर शोध करना तब और जरूरी हो जाता है जब सिनेमा सामाजिक बदलाव का एक माध्यम बन जाती है आज के दौर में खासकर तवा और जब तकनीक का विकास दिन प्रतिदिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा हूं और उसके माध्यम से समाज की सकारात्मक और नकारात्मक छवि दोनों बनाई जा रही इसलिए सिनेमा पर शोध करना तब और जरूरी हो जाता है जब सिनेमा ही सामाजिक बदलाव के लिए एक माध्यम के रूप में कार्य कर रही हो ऐसे में भोजपुरी सिनेमा को हम ध्यान में रखकर की उसकी लोकप्रियता की बात करते हैं और जानते हैं क्या कि उसकी लोकप्रियता की अन्य पैमानों में से एक पैमाना गाने का क्या महत्व है जैसा कि पता है कि गाने मनोरंजन का साधन तो होती है खासकर गाने को अगर फिल्में रख कर के सुना जाए तो वह थाने में ही तो वह गाने नहीं फिल्म की पूरी कहानी को एक तरीके से बयां करने की कोशिश करते हैं मनोरंजन के साथ-साथ गाने लोकप्रिय भी होते हैं तो सिनेमा भी लोकप्रिय होने की यादें संभावनाएं बनती है

फ़िल्म एक सामाजिक आईना हैं

समाज में फैली कुरीतियों को रोकने के लिए किसी ना किसी को आगे आना पड़ता है। जरूरी नहीं वह नेता ही हो। अगर अभिनेता भी अपने अभिनय के माध्यम से लोगों को जागरूक करे तो वह बदलाव ला सकता है। 

समय-समय पर सामाजिक बदलाव के साथ मनोरंजन के लिए फिल्में बनती रही हैं। किसी प्रकार का संदेश देने के लिए भी फिल्में बनाई जाती रही हैं।
अब तक हम बॉलीवुड और हॉलीवुड फिल्मों को याद करते रहे हैं। लेकिन अगर भारत में बात करें तो तेजी से लोकप्रिय हो रहे राज्य स्तरीय फिल्में या अलग-अलग भाषाई आधार पर बन रही फिल्में लोगों के बीच लोकप्रिय हो रही हैं। इसीलिए आजकल हम मराठी, हरियाणवी, पंजाबी, भोजपुरी आदि फिल्मों के नाम भी याद रखते हैं और उसे भी देख लेते हैं। ऐसा इसलिए सम्भव हो पाता है क्योंकि ज्यादातर ऐसी भाषाई फिल्मों को ग्लोबल स्तर पर लोग इसलिए देख लेते हैं क्योंकि उनके अनेक वर्जन बनाये जा रहे हैं। अगर साउथ इंडियन फ़िल्म है तो उसकी हिंदी में डब किया हुआ वर्जन भी लोगों के द्वारा देखा जाता है। यहां इसलिए इस पर चर्चा की जा रही हैं क्योंकि भाषा कहीं पर भी बाधा बनने ही नहीं पाती और केवल वहां की चीजों खासकर फिल्म के अभिनय, थीम, कहानी से लोग परिचित होना चाहते हैं। दिनोंदिन इन फिल्मों की  बढ़ती लोकप्रियता से इनका भी बड़े स्तर पर उद्द्योग स्थापित होना बड़ी बात नहीं है।
हम इन्हीं में से एक भोजपुरी फ़िल्म की बात करने जा रहे हैं।


भोजपुरी सिनेमा अश्लीलता का सिनेमा क्यो कहा जाता हैं

 भोजपुरी सिनेमा यानी फूहड़ सिनेमा, द्विअर्थी संवादों वाला सिनेमा, मसालेदार सिनेमा, परिवार के साथ बैठ कर न देखा जाने वाला सिनेमा…! पिछले कुछ समय में भोजपुरी फिल्मों की भले ही यह छवि बनी हो लेकिन सच यह है कि कोई वक्त था जब भोजपुरी सिनेमा बेहद समृद्ध और संपन्न था। बहुत कम लोग यह बात जानते होंगे कि भोजपुरी सिनेमा की शुरूआत का श्रेय भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के उस आह्वान को जाता है जो उन्होंने मुंबई फिल्मोद्योग के सामने किया था और जिससे प्रेरित होकर हिन्दी फिल्मों के प्रसिद्ध चरित्र अभिनेता नजीर हुसैन ने पहली भोजपुरी फिल्म गंगा मइया तोहे पियरी चढ़ैइबो बनाने जैसा भगीरथ काम अंजाम दिया था। बीते छह दशकों में भोजपुरी सिनेमा में किस किस्म के बदलाव आए, किन संकरे, पथरीले और अंधेरे रास्तों से होकर यह सिनेमा गुजरा, किस तरह से इसकी तरक्की हुई और फिर कैसे यह पतन की राह पर चल पड़ा, कैसे बाजार ने इस सिनेमा में अपनी घुसपैठ की और भोजपुरी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल न करने से इस पर कैसा असर पड़ा। ऐसे ढेरों विषयों को अपने में समेटे भोजपुरी फिल्मों का सफरनामा नाम की यह किताब न सिर्फ पाठकों की जिज्ञासा को शांत करती है बल्कि यह उम्मीद भी जगाती है कि यदि भोजपुरी सिनेमा से जुड़े लोग जरा-सा संभल जाएं तो एक बार फिर से इस सिनेमा के अच्छे दिन आ सकते हैं। दिल्ली के प्रभात प्रकाशन से आई इस किताब में लेखक रविराज पटेल का इसे लिखने के लिए किया गया शोध और संघर्ष साफ झलकता है और यही वजह है कि भोजपुरी सिनेमा के अब तक के सफर व मौजूदा दशा पर यह एक उल्लेखनीय दस्तावेज बन कर सामने आती है।

 

 

 

 

 

दीपक दुआ

 

लेखक वरिष्ठ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। साल 1993 से फिल्मपत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज से घुमक्कड़। सिनेमा विषयक लेखसाक्षात्कारसमीक्षाएं व रिपोर्ताजलिखने वाले दीपक कई समाचार पत्रोंपत्रिकाओं के लिए नियमित लिखते हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।

मरद अभी बच्चा बा, आइटम सॉन्ग


मरद अभी बच्चा बा, आइटम सॉन्ग 
दुल्हिन गंगा पार के इस फ़िल्म का यह गाना यूट्यूब पर 100 मिलियन से अधिक पर देखा जा चुका हैं गाने में आम्रपाली दुबे और खेसारी लाल यादव मुख्य भूमिका में हैं गीत को खेसारी लाल यादव और प्रियंका सिंह में आवाज दिया हैं गीत को पवन पांडे और संगीत को मधुकर आन्नद ने दिया हैं । अगर बात करे ये गाना फ़िल्म में कितना जरूरी था तो ये गाना फ़िल्म के कहानी के हिसाब से इस गाने का कोई मोल फ़िल्म में नही था । बस दर्शक को फ़िल्म की तरफ आकर्षित करने के लिए इस गाने को फ़िल्म में डाल गया । गीत में आम्रपाली दुबे का बोल्ड अदाएं और खेसारी लाल का बम्पर डांस  फ़िल्म को लोकप्रिय बनने का काम करती हैं । फ़िल्म के रिलिक्स भी बहुत ही अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया गया । गीत के रिलिक्स की बात के तो गीत में सुहागिन औरत अपने पति को बच्चा बता रही हैं

फुलत देह तोहार झूलत जाता इ ना अच्छा बा,
फुलत देह तोहार झूलत जाता इ ना अच्छा बा,
का बताई हो..( है बताई हो...)
कबो  सेजिया पे मारे नही गच्चा,
मरद अभी बच्चा बा ,
कबो सेजिया पे मारे नही गच्चा
मरद अभी बच्चा बा...
चाईली आग जैसे तावा मारता जवानी,
सुना जाईबु तू ठंढाई बिना बर्फ के पानी ये रानी,-2
दूध होर्लिक्स पियाव रोज रोज यदि कच्चा बा,- 2
कईसे कही हो...
कबो  सेजिया पे मारे नही गच्चा,
मरद अभी बच्चा बा ,
कबो सेजिया पे मारे नही गच्चा
मरद अभी बच्चा बा...
गीत का संगीत बहुत ही लाजवब बनाया गया हैं जो फ़िल्म के इस गाने को और भी लोकप्रिय बनाती इस गाने को यूट्यूब पर पहले रिलीज किया गया गाना रिलीज होते 24 घण्टे के अंदर 8 मिलियन लोगो मे देखा जिसका प्रभाव फ़िल्म पर भी पड़ा और इस गाने ने फ़िल्म की लोकप्रियता को काफी हद तक बढ़ाया हैं।

तुमसे कुछ कहना हैं


तुमसे कुछ कहना चाहता हूं अंदर ही अंदर टूटता जा रहा हूँ । तुम हमेशा मेरे ऊपर गुस्सा करती हो शायद आज उसी डर से तुमसे कुछ कह नही पा रहा हूँ  कि कंही तुम फिर गुस्सा ना हो जाओ । मुझे नही पता मैं गलत हूँ या तुम । plz मुझसे अच्छे से बात करो मैं बीमार होता चला जा रहा हूँ और तुमसे दूर भी । आज कल तो जब भी बेचैनी और दर्द होता हैं तो रो लेता हूँ थोड़ा समय के लिए आराम मिल जाता हैं । तुम मुझे क्यो नही समझ पा रही हो । 

भारतीय सिनेमा

  कहा जाता है कि सिनेमा समाज का दर्पण होता है समाज की संस्कृति को बताने का एक माध्यम होता है समाज में बदलाव लाने का काम करता है वास्तव में स...