10 अप्रैल 2018

शायद जिंदादिली इसी को कहते हैं

प्राप्त-व्हाट्सएप्प
दिल के टूटने पर भी हंसना शायद जिंदादिली इसी को कहते हैं ,ठोकर लगने पर भी मंजिल तक भटकना शायद तलाश इसी को कहते हैं, किसी को चाह कर भी ना पाना शायद  चाहत इसी को कहते हैं,टूटे खंडहर में बिना तेल के दीए जलाना शायद उम्मीद किसी को कहते हैं,  गिर जाने पर भी फिर से खड़ा होना शायद हिम्मत इसी को कहते हैं, और ये उम्मीद, हिम्मत चाहत तलाश शायद इसी को जिंदगी कहते हैं।"..         

25 मार्च 2018

बिहार दिवस

नीरज सिंह
दिल्ली विश्वविद्यालय

बिहार से दिल्ली होखे
अउरी बैग में सतुआ के लिटी होखे
बाबू जी के दिहल कुछु पईसा होखे
ओहि पईसावा में लउकत बाबू जी के बड़का बन के आई
ई बोले वाला बतिया होखे
माई के हथवा से बुनल ऊन के सुइटर होखे
बड़का बहिनिया के बेगवा से चुराईल एगो दुगो कल्मवा होखे 
आपन गइया के दुधवा से बनल एक डब्बा घी होखे
ट्रेनवा चाहे कउनो होखे
खाली बनारस से होके दिल्ली जात होखे
लकठो ओमें बेचात होखे
दिल्ली में अइसन बात होखे
रात से सुबह तक ख़ाली अंजोरिया रात होखे
अउरी रोज दाल चावल चोखा बनत होखे
आम के आचार आपन लोटवा अमवा के पेड़वा के होखे
तब का बिहार अउर दिल्ली होखे
रोज मजा कटाई अगर अइसन बिहारी वाली बात होखे...।

काश तुम होती ।

नीरज सिंह
दिल्ली विश्वविद्यालय

काश तुम होती

सड़कों पर चलता तो हूँ
अगर तुम साथ होती तो सफ़रनामा बन जाता

सिगरेट पीने से आज-कल सभी रोकने लगे हैं मुझे
गर तुम रोकती तो बात अलग होती

चाय के साथ अक्सर धुँआ ही उड़ा रहा हूँ
अगर चाय तुम्हारे हाथों की होती तो बात कुछ और होती

याद आती हैं तुम्हारी जब हम अकेले होते हैं
साथ न छोड़ा होता तो बात ही कुछ और होती

रातों को नींद में 
दिनों में रूह में तुम ही होती हो
दूर न होती तो बात ही अलग थी

वो बात-बात पर गुस्सा होना तुम्हारा
वो गुस्सा अगर प्यार से करती तो बात ही अलग थी

वो सफ़ेद कुर्ता अभी भी पहनता हूँ
बस उस पर तुम्हारे बाहों की खुश्बू होती तो बात ही अलग थी ।

23 मार्च 2018

आपको हँसने का हुनर रखते हैं ।

जयदीप कुमार
आपके जख्मो को खरीदने का हुनर रखते है
आपके दर्द को मिटाने का हुनर रखते है.
मेरे आँखों में भले आँसुओ का सागर हो
लेकिन आपको हँसाने का हुनर रखते है.

20 मार्च 2018

हमे कही मत ढूढ़ना ।

नीरज सिंह
आज सुबह उठा तो एक बड़ा ही दुःखद समाचार सुना कि बलिया के महान कवि और लेखक अब नहीं रहें । केदारनाथ जी को पढ़ कर मैंने कविताएं लिखनी शुरू की
बहुत कुछ सीखा हैं उनसे । दरअसल वो मरे नहीं हैं हमारे बीच मे हैं हमारे यूपी के हर नोजवान की सासों में हैं आप उन्हें महसूस कर सकते हैं
उनके ऊपर कुछ लाइन लिखी हैं 😞

हमें कही मत ढूंढना
न बलिया में, न बलिया की उन प्यारी-प्यारी सड़को पर
न ही खेतों में ,  न किसी बगीचों में
न उस छत जहाँ बैठ के पूरे जग को समझा !

मैं नही मिलूँगा तुम्हें बनारस के घाटों पे
न उन में बह रहे सीतल जलो में
न उस जल पर चल रही नाव में
न बनारस के हवाओं में
और न ही उड़ रही उस आवारा पंछी में !

हमें मत ढूंढना कहि
बलिया के स्टेशन पर
वहां बने हजारी प्रसाद जी के पुस्तकालय में
स्टेशन पर बैठें किसी गरीब माँ के आँचलो में
वहाँ जो पेड़ हैं उनके सूखे पत्तों पर !

बलिया से जो सड़क बिहार जाती हैं
उस पर नहीं मिलूँगा में
गंगा जी के तीरे नहीं बैठूंगा में
निमिया के गछिया पर
रस पीने नहीं आऊंगा में !

बलिया से बनारस इसके बीच नहीं आऊँगा में
गाजीपुर में जाकर कविताएं नहीं लिखूंगा में
फेफना में धान के खेतो में नहीं उगुगा में
औड़िहार के पकौड़ो नही चखने आऊँगा में
सारनाथ में घूमते नहीं दिखूंगा में
ट्रेन चले या न चले
बलिया से बनारस के बीच उनकी हवाओं में नहीं उड़ने आऊंगा में !

बोल देना मेरे चाहने वालों को
भूल जाए हमें
में अब न आ पाउँगा
में उन्हीं में अपने आप को  छोड़ के जा रहा हूँ
वो रोए न मुझे याद करके बोलना उन्हें
उनके आँसुओ में आऊंगा में .......।

19 मार्च 2018

महाराणा प्रताप की वीरता पर श्याम नारायण पांडेय की कविता

कविता पाठ- आकाश सिंह

जिससे मैंने प्यार किया ।- प्रभात

जिससे मैनें प्यार किया , वो प्यार नही एक सपना था
प्यार के बदले धोखा दिया , इंसान कहाँ वो अपना था
रह कर उसकी यादो में देखु ,उसकी  निगाहों को
रुका खड़ा हूँ उसी राह पर  जहाँ मुझे वह छोड़ गई
उसके प्यार में पड़ कर अपनी असलियत को  भूल गया
जिससे मैन प्यार किया , वो प्यार नही एक सपना था

तुम ही मुझके ऐसे मिले, कोई और नहीं  हैं तुम्हारे जैसा
उसने तोड़ दिया रिश्ता,  खुद को समझाना कैस
सच्चे प्यार में पड़कर जाना, इतना कहां मालूम था
जिससे मैनें प्यार किया , वो प्यार नही एक सपना था

गाता गाता चल पड़ा हूँ, तन्हाई ले ख्वाबों में
प्रेम से मैंने लिख दी है, दबी हुई भावनाओं को
तुमसे ही क्यों प्यार हुआ, दिल से इतना क्यों चाहा था-

23 फ़रवरी 2018

बलिदान


कुमुद सिंह

आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी रही होगी उस लड़की की जिसने उसे बिना सोचे समझे अपनी आगे की पूरी ज़िंदगी एक अधेड़ आदमी के साथ गुज़ारने पर बेबस कर दिया???????

क्या वो इतनी नादान रही होगी की उसे अपनी इच्छायें भी ज्ञात नहीं थीं या फिर उसके आगे ऐसे दो विकल्प रख दिए गए होंगे जो दो होकर भी एक ही हो(जैसा कि अकसर होता है) या फिर उस लड़की के घरवालों ने उसकी खुशियो का गला घोंट कर,उसके रूह को तड़पता छोड़ कर कुछ चंद रूपयों के लिए उसके तन का सौदा कर दिया होगा या फिर गरीबी और दहेजप्रथा के चंगुल से बचने के लिए उसे अपनी इच्छओं और खुशियो का बलिदान देना पड़ा होगा....
खैर, सच्चाई का तो इल्म मुझे नहीं है बस इतना कहूंगी की बलिदान सिर्फ हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने ही नहीं दिया है बल्कि ये तो हर रोज़ दिया जा रहा है पूरे देश भर में हज़ारों लड़किओ द्वारा बस अन्तर इतना है कि उन्होंने देश में पनप रही बुराइयों को घुटने टिकाने के लिए तन का बलिदान दिया था और आज हम बुराइयों के आगे घुटने टेक कर मन का बलिदान देते है।
#बलिदान

मेरे पिता जी

लेखक - प्रभात
शीर्षक- मेरे पिता जी
वक्ता- प्रभात

19 फ़रवरी 2018

हिन्दू कोड बिल

मो गुफरान खान
सम्पर्क सूत्र   7054171363
             डॉ भीमराम आंबेडकर मिशन पर आहंग थिएटर ग्रुप द्वारा  नाटक हिन्दू कोड बिल  डॉ. हिरण्य हिमकर के निर्देशन और लेखन में 20-01-2018 को प्रस्तुत किया गया था अभी हालहिं में अश्मिता थिएटर ग्रुप ने भी हिन्दू कोड बिल नाटक का राकेश कुमार के निर्देशन में मंचन किया  मैंने दोनों नाटक को देखा आहंग द्वारा प्रस्तुत हिन्दू कोड बिल उस समय की बिडम्बनापुर्ण छुआछूत सामाजिक स्थिति को दर्शाता है  इस विषय को लेकर नाटक का ताना बाना बुना गया  एक तरफ महिलाओं शुद्रजाति पर ब्राह्मणों  धनी वर्ग वा सियासतदां द्वारा किए गए अत्याचार बिधवा पुनर विबाह वर्जित जैसी स्थिति को  2 घंटे के नाटक में बखूबी पेश किआ गया वहीं दूसरी ओर धर्म जाति समाज (खासतौर से महलाओं)रक्षा उसमे ऊर्जा भरने का काम किया  नाटक को गंभीर और काल्पनिक विषयवस्तु के साथ तथ्यात्मक  विचारात्मक और व्यंगग्यात्मक अभिव्यक्ति के बीच एक संतुलन में पेश किया गया ताकि बकैती न बन जाये पात्रों की संख्या अधिक होने के कारण एक दो कलाकारों को एक से अधिक भूमिका भी  निभानी पड़ी सभी कलाकारों ने पूरी मेहनत लगन से नाटक को सफल बनाने में जीजान लगा दी और अपने किरदार को बखूबी निभाया पूरा ऑडोटोरियम तालियों से गूंज उठा कलाकारों का मन उल्लास से भर दिया  नाटक अंत तक पहुँचते पहुँचते ऐसी स्थिति का भी परिणाम सामने आया सदन में बैठे लोगों की पलके नम गो गयी कुछ ऊँची जाति के लोग आके दलित समाज की महिलाओं के  साथ  बलात्कार करतें है उनको मरते  पीटते इनको घरों को बिरान कर देते हैं ऐसी स्थिति को भी नाटक में दर्शाया गया है वहीं मशहूर अश्मीता थिएटर ग्रुप का भी नाटक  हिन्दू कोड बिल देखने का सौभग्य प्राप्त हुआ नाटक राकेश कुमार जी के निर्देशन में प्रस्तुत किया गया नाटक  के कंटेंट से ज़्यादा नाटक की प्रॉपर्टीज़ पर    ध्यान दिया गया महिलाओं और छुआछुत ऐसी स्थिति पर बल देने के बजाये नाटक में आंबेडकर जी के प्रेमप्रसंग पर ज़्यादा बल दिया गया  इक्का दुक्का छोटी छोटी घटनाओं को और इतहास का सहारा लेकर उसकी तारीख़ को ही प्रस्तुत किया गया                 

15 फ़रवरी 2018

लोग मुझे शराबी समझने लगे ।

नीरज सिंह
दिल्ली विश्वविद्यालय
हा मुझे लोग शराबी समझने लगे हैं क्योंकि !
क्योंकि मुझ से नहीं होता औरो की तरह झूठा प्रेम जताना !
नहीं आता मुझ एक शब्दों का अनेक भेद बताना !
नहीं आता मुझे ऐसे आँसू बहाना
जो सिर्फ मतलब पर निकलते हैं !
नहीं आता मुझे माँ से झूठ बोलना नहीं आता पिता जी से आँख लड़ाना !
नहीं आता वो कार्य जो एक समाज से हटके हो !
नहीं आती वो रात अब जो इस दिल को बेहलती हो !
नहीं गा पाता मैं गीत तराने
नहीं केह पाता झूठे फ़साने !
मूझे नहीं आती हैं अब हर वो चीजें करनी जो मतलबी हो ।
शायद इस लिए लोग मुझे शराबी समझने लगे हैं ........!

दीवाना

जयदीप कुमार
अब शिकायत तुझसे नही खुद से है,
मना तेरे सारे वादे झूठे थे,
उनपर यकीन तो मेरा सच्चा था
तुझसे गिला नही अब कोई ,अये दिलरुबा।
हम तो कल भी दीवाने थे आज भी दीवाने हैं

आज भी मोहब्बत किये जा रहा हूँ।

जयदीप कुमार

उसकी सूरत धडकनों में लिए जिये जा रहा हूँ
उसके हर शब्द को अमृत सा पीये जा रहा हू
वो चली गयी मुझे छोड़ कर
आज भी उसे मोहब्बत किये जा रहा हूँ.

13 फ़रवरी 2018

किसानों का मित्र माटी फाउंडेशन

जयदीप कुमार
दिल्ली विश्वविद्यालय

माटी फाउंडेशन ! जहाँ केचुए को किसान का सबसे अच्छा मित्र कहा गया हैं वही माटी फाउंडेशन भी किसानों का सबसे अच्छा मित्र साबित हो रहा हैं। माटी फाउंडेशन एक किसानों का एनजीओ हैं जो उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिले के अंतर्गत परशुरामपुर और तहसील धनघटा गाँवो के परिवारों के बेहतर जीवन को बढ़ाने और स्थायी सामाजिक विकास के लिए प्रतिबद्ध है भारतीय ट्रस्ट अधिनियम के तहत पंजीकृत माटी फाउंडेशन लाभप्रद संगठन नहीं है जो आर्थिक स्वतंत्रता के लिए प्रयास करने और उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में गरीबी की स्थिति से बाहर निकलने में लोगों की एकता के लिए खड़ा हैं और छोटे एवं मध्यम उद्यमों को आगे बढ़ाने के लिए युवाओं और किसानों प्रोत्साहित करता हैं
 माटी फाउंडेशन की टीम बीज इकाई का सर्वेक्षण करते हुए

माटी फाउंडेशन की महत्वपूर्ण चिंता हैं परिवारों का स्वास्थ्य ।फाउंडेशन का मानना हैं कि एक समाज का स्वास्थ्य प्रबंधन पौष्टिक भोजन की निरंतर आपूर्ति हैं । पौष्टिक भोजन की स्थानीय उपलब्धता एकीकृत कृषि पद्धति के साथ खेती को बेहतर बनाने पर निर्भर करती है जो पोषक तत्वों की आपूर्ति सुनिश्चित कर सकती हैं ।
 सरसों की खेती का अवलोकन करते हुए माटी फाउंडेशन के डायरेक्टर डॉ देवेंद्र जी के साथ हनुमान जी
माटी फाउंडेशन मिशन क्या हैं ? ( माटी फाउंडेसन के साईट से - http://www.maatee.org)
प्राकृतिक संसाधनों के न्यायसंगत और न्यायपूर्ण उपयोग के माध्यम से समाज के विकास की कार्य योजना होगी। प्रत्येक गांव के लिए जैवविविधता रजिस्ट्रीकरण करने के लिए हर तीन साल में ग्रामीण प्राकृतिक संसाधनों का आकलन और सूचीबद्ध किया जाएगा। परिवार के स्वास्थ्य और पोषण में सभी पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं को सूचीबद्ध करने की आवश्यकता सर्वोपरि है। ये ज्ञान पूल पंचायती राज प्रणाली में ज्ञान वाल्टों के रूप में संग्रहित किए जाएंगे। इन खजाने को सार्वजनिक भंडार में सुरक्षित किया जाएगा जिसमें सभी सुरक्षा विशेषताएं हैं।

12 फ़रवरी 2018

जो बीत गयी सो बात गयी

जो बीत गयी सो बात गयी
हरिवंशराय बच्चन
कविता पाठ- प्रभात

इंटरनेट

अनुज कुमार यादव
दिल्ली विश्वविद्यालय

आजकल का दौर इंटरनेट का दौर हैं ,क्योंकि इक्कीसवीं शताब्दी से ही इंटरनेट की शुरुआत  हुई और  इक्कीसवीं शताब्दी में इंटरनेट का चलन काफी तीव्रता से बढ रहा है और  सोशल मीडिया  को भी करोड़ लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं कई लोग कुछ हद तक सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल कर रहे है और  कुछ ज्यादा हद तक लोग सोशल मीडिया का दुरुपयोग कर रहे है और यहीं से शुरूआत होती है स्वतंत्रता के नाम पर अराजकता फैलाना नहीं जिस प्रकार से सैकड़ों लोग ज्यादा से ज्यादा कार्य सोशल मीडिया इंटरनेट पर  करते है।
जैसे फेसबुक,ट्वीटर, गूगल आदि  लेकिन कई लोग सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल कर अपहरण ,चोरी,डकैती जैसी वारदात को अंजाम देने में सफल हो जाते है ऐसे  ही आतंकि संघटन आई एस आई देश मे अशांति व बम धमाके तथा हमारे देश की अँधरूनी मामले  से जूडी जानकारी भी सोशल मीडिया व इंटरनेट के जरीए निकालते है क्योंकि आतंकि सघठन आई एस आई एस देश मे खुसपैठ करने के लिए सोशल मीडिया का दुरुपयोग करते है इसलिए इंटरनेट व सोशल मीडिया का दुरुपयोग करने वालो पर कडी कार्यवाही व सजा होनी चाहिये जिससे देश सुरक्षित व शांतिपूर्ण ढंग से सुरक्षित रहे व स्वतंत्र  रहे।

वैलेंटाइन डे पर एक लेख

जयदीप कुमार
दिल्ली विश्वविद्यालय
फरवरी महीने का दूसरा हप्ता प्रेमी - प्रेमिकाओं के लिए खास होता हैं इस हप्ते को प्रेमी बड़ी बेसर्बी से इंतज़ार करते हैं ये हप्ते पहले रोज डे से शुरुआत होती हैं और वेलेंटाइन डे पर खत्म होता हैं वेलेंटाइन डे केवल प्रेमी और प्रेमिकाओं के लिए ही नही होता बल्कि उन सभी के लिए होता हैं जो किसी न किसी को प्यार करते हैं माँ - बेटे के लिए भाई - बहन के लिए या दोस्त , दादा- दादी  बच्चे सभी के लिए होता हैं
    चलिए इस पूरे हप्ते के सभी डे के बारे में बताते हैं
1- 7 फरवरी रोज डे - हफ्ते के पहले दिन की शुरुआत रोज डे के साथ होती है। इस दिन हम जिससे प्यार करते हैं उसे गुलाब का फूल देकर अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं।
2- 8 फरवरी प्रपोज डे- दूसरा दिन प्रपोज डे का होता है। इस दिन प्रेमी जोड़ा एक-दूसरे को प्रपोज करता है।
3- 9 फरवरी चॉकलेट डे- चॉकलेट तो सभी को पसंद होती है। प्यार का इजहार करने के लिए चॉकलेट का सहारा लिया जा  है इससे सामने वाले की नाराजगी को पल भर में दूर हो जाती  है। इस दिन चॉकलेट देने से प्यार बढ़ता है।
4- 10 फरवरी टैडी डे- लड़कियों को टैडी बहुत पसंद होता है। टैडी को पूरी दुनिया में प्यार का प्रतीक माना जाता है। बचपन से लेकर जवानी तक टैडी आप के साथ होता हैं
5- 11 फरवरी प्रॉमिस डे- वादे हर रिश्ते की आधारशिला होते हैं। आप जिससे प्यार करते हैं उनसे आप खास वादा करते हैं वादा अपने हिसाब से करते हैं
6- 12 फरवरी किस डे- वैलेनटाइन वीक के छठे दिन को किस डे के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन प्रेमी युगल किस करके अपने प्यार का एहसास अपने साथी को करवाते हैं
7- 13 फरवरी हग डे- गले लगाकर आप बहुत से रुठे हुए अपने प्रियजनों को हम मानते हैं। इस दिन आप गर्मजोशी से एक-दूसरे को गले लगाकर अपनी भावनाओं का अहसास दिला सकते हैं।
8- 14 फरवरी वैलेनटाइन डे- इस दिन प्यार करने वालों के लिए महत्वपूर्ण होता है। इस दिन को प्रेमी जोड़ा एक-दूसरे के लिए स्पेशल बनाने के साथ ही उसे कभी ना भूलने वाला दिन बनाने की कोशिश करते हैं। एक सप्ताह चलने वाले प्यार के त्योहार का अंत वैलेंटाइन डे के साथ ही हो जाता है।

महाशिवरात्रि

डॉ. राजकुमार उपाध्याय मणि

इस बार महाशिवरात्रि को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है इसकी वजह यह है कि महाशिवरात्रि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि को होती है..
इस साल 13 जनवरी को पूरे दिन त्रयोदशी है और मध्यरात्रि में 11 बजकर 35 मिनट से चतुर्दशी शुरू होगी
जबकि 14 फरवरी को पूरे दिन और रात 12 बजकर 47 मिनट तक चतुर्दशी होगा ऐसे में लोगों के बीच असमंजस है कि महाशिवरात्रि का व्रत 13 फरवरी को रखा जाये या 14 फरवरी को ?

इस असमंजस को दूर करने के लिए धर्मसिंधु नामक ग्रंथ का सहारा लिया जिसमें ऐसे हालात के लिए कहा गया है :
*परेद्युर्निशीथैकदेश-व्याप्तौ पूर्वेद्युः सम्पूर्णतद्व्याप्तौ पूर्वैव..'*
इन पंक्तियों का अर्थ समझें तो कहा गया है कि :- अगर चतुर्दशी दूसरे दिन निशीथ काल में कुछ समय के लिए हो और पहले दिन संपूर्ण भाग में हो तो पहले दिन ही महाशिवरात्रि का व्रत करना चाहिये

यानी इस बार 13 फरवरी को महाशिवरात्रि का व्रत रखें.!!

*ऊँ नमः शिवाय*

न जाने किधर - कविता

नीरज सिंह
दिल्ली विश्वविद्यालय

अब हम दूर होने लगे हैं !
न जाने किधर खोने लगे हैं ?

न सुबह का ख्याल हैं !
न शाम की पहल हैं ?

न अपनो का साथ हैं !
न गैरों का प्यार है ?

न बातों की रातें हैं !
न प्यासे नैना हैं ?

न कुछ बात रही अब दिल में !
न कुछ सपनें आते इस मन में ?

न तुम रही !
न यादें अब तुम्हारी ?

अब हम दूर होने लगें हैं !
न जाने किधर खोने लगें हैं !
न जाने किधर ...... ?

देव भूमि ऋषिकेश

संदीप कुमार
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय
एक बेहतरीन यात्रा देव भूमि ऋषिकेश की, जहाँ गंगा पर्वतमालाओं को पीछे छोड़ समतल धरातल की तरफ आगे बढ़ जाती है। ऋषिकेश का शांत वातावरण कई विख्यात आश्रमों का घर है। उत्तराखण्ड में समुद्र तल से 1360 फीट की ऊंचाई पर स्थित ऋषिकेश भारत के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में एक है। हिमालय की निचली पहाड़ियों और प्राकृतिक सुन्दरता से घिरे इस धार्मिक स्थान से बहती निर्मल पवित्र मां गंगा इसे अतुल्य बनाती है मान्यताओं के इस स्थान पर ध्यान लगाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस देव लोक का अदभुत,अदुतीय दर्शन करने का  सौभाग्य हम सभी मित्रों को मिला।

भारतीय सिनेमा में स्त्री

जयदीप कुमार
दिल्ली विश्वविद्यालय

भारतीय सिनेमा की शुरुआत 1896 में हुई । भारत में प्रथम स्वदेश निर्मित फीचर फिल्म राजा हरिश्चंद्र बनने का श्रेय श्री गोविन्द फाल्के उर्फ़ या दादा साहब फाल्के को जाता है । दादा साहब फाल्के ने अपने लन्दन प्रवास के दौरान एक चलचित्र देखा जो ईसा मसीह के जीवन पर आधारित था । जिससे दादा साहब फाल्के को भी पौराणिक कथाओं पर चलचित्र निर्माण करने की इच्छा जागृत हुयी और इसलिए  स्वदेश आकर उन्होंने राजा हरिश्चंद्र नामक फिल्म का निर्माण किया, जो 03 मई 1913 में सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुआ ।

वर्ष 1931 में पहली बोलती फिल्म “आलम आरा” बनी. वर्ष 1931 में भारत में सिनेमा के क्षेत्र में स्त्री की स्थिति अच्छी नहीं थी । कोई भी स्त्री सिनेमा जैसे कलात्मक, मनोरंजनात्मक विधा में आने और अपनी प्रतिभा दिखाने को तैयार नहीं थी ।

दादा साहब फाल्के ने वर्ष 1913 में ही फिल्म मोहिनी भस्मासुर का निर्माण किया, जिसमे कमला गोखले और उनकी माँ दुर्गा गोखले ने अभिनय किया और इनको भारतीय फिल्म जगत की पहली महिला अभिनेत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ ।

दुर्गा गोखले का फिल्मों में आना कोई पारिवारिक स्वीकृति या अभिनय की इच्छा न होते हुए एक  विवशता थी. अपने पति से अलगाव की स्थिति में उनके पास तीन ही विकल्प थे. पहला विकल्प: किसी के घर में काम करना. दूसरा- वेश्यावृति का काम करना, तीसरा- फिल्मों में अभिनय करना । तीनों ही समाज की दृष्टि से निंदनीय थे लेकिन दुर्गा गोखले ने अपने और अपनी पुत्री के जीवन यापन के लिए ये रास्ता चुना और सिनेमा में एक नयी क्रांति की शुरुआत हुई ।

इस प्रकार फिल्मों में स्त्री का आगमन हुआ और इसी वर्ष 1926 में प्रदर्शित फिल्म बुलबुले परिस्तान पहली फिल्म में रूप में दिखी थी जिसका निर्देशन एक महिला बेगम फातिमा सुलतान ने किया ।

आज सिनेमा में स्त्री की स्थिति बदल गयी है फिल्मों में नायिका बनने की होड़ लग गयी है और अच्छे से अच्छे परिवार से लड़कियां फिल्मों में आ रही है ।

भारतीय समाज में व्याप्त नारी जीवन की विडम्बनाओं को लेकर फ़िल्में बनी जिसमें दुनिया ना माने (1937), अछूत कन्या (1936), बाल योगिनी (1936) आदि नारी जीवन की समस्याओं खासकर बाल विवाह, पर्दा प्रथा, अशिक्षा को उजागर करते देखे गए जो उस समय समाज में विकृति के रूप में हावी थे ।

वर्ष 1933 में फिल्म कर्मा में नायिका देविका रानी ने ऐसा बोल्ड दृश्य अभिनीत किया जो समाज के अनुरूप अच्छा नहीं माना गया था परन्तु उस समय नायिका देविका रानी ने ही अपनी प्रतिभा लोगों के सामने प्रस्तुत किया इसके लिए उन्हें इस पर तारीफ भी मिली और लोगों से आलोचना भी ।

निर्देशक महबूब खान की फिल्म “मदर इंडिया” में एक महिला के संघर्षशील जीवन को बारीकी से दिखाया गया है । वह विपरीत हालातों में भी हिम्मत नहीं हारती और बड़े ही सादगी के साथ अपने बच्चों की परवरिश करती है ।

फिल्म 1960 में आयी “मुग़ल- ए- आजम” जिसमें अपने प्यार के लिए नायिका अपने आपको बलिदान कर देने की मजबूत इच्छाशक्ति रखती है ।

भारतीय हिन्दी फिल्मों में महिलाओं की भूमिका को नजरअंदाज नहीं कर सकते. हमें बहुत से फिल्मों में नारी शक्ति का अद्भुत देखने को मिलता है. जैसे- देवदास, साहब बीवी और गुलाम, अंकुर, मासून, परिणीता, चक दे इंडिया आदि फिल्मों में महिलाओं की भूमिका उल्लेखनीय है ।

आज हिन्दी सिनेमा में नायिकाएं अपनी प्रतिभा लेकर इस प्रकार अपनी छाप लोगों के ऊपर छोड़कर आगे बढ़ते हुए देखी जा सकती हैं ।

नारी की भूमिका और महत्व

कुमुद सिंह
Proud to be an indian...
ya..i am proud to be an indian..
इंडिया..वो जगह..
जहाँ नारी को उजाले में पूजते है और अंधेरे में नोंचते है ,
जहाँ नारी को बाहरी दुनिया में सशक्त बनाने के नारे तो लगाते है और वही घर के अंदर उसकी शारीरिक क्षमता कम होने के कारण उस पर अपना ज़ोर आज़माते है ,
जहाँ बेटी पैदा करने के नाम से अछूता भी होना है और वही रात में छूने के लिए बिस्तर पर भी कोई होना चाहिए ,
जहाँ शादी के बाद बीवी की वर्जिनिटी भी चाहिए और शादी से पहले लड़कियों को नॉन-वर्जिन भी करना है,
जहाँ महिलाओं से जुड़े लाल धब्बे से घिन्न भी आती है और उन्ही से बच्चे भी चाहिये,
जहाँ औरत के बच्चे पैदा करने में असमर्थ होने पर उसे 'बांझ','असामाजिक तत्व',आदि जैसे स्वर्ण शब्दो से नवाजते है और खुद के असमर्थता पर अपनी मर्दानगी को नपुंसक शब्द से जुड़ता देख खून खौल उठता है................................
अब बस इससे ज्यादा कहने की हिम्मत नही कर रही है..है तो बहुत कुछ बयान करने को अपने 'incredible india' के बारे में पर अभी यही तक रहने देते है क्योंकि चाहे जो भी हो कहना तो पड़ेगा ही न मुझे की i m proud to be an indian..
#actuallyiamreallyproud

आखिर गलत क्या था

जयदीप कुमार
तुम्हारा घर बुलाना गलत था कि मेरा घर आना गलत था
अपने हाथों से खिलना था या तुमसे मोहब्बत करना गलत था
दूर जाते समय गले लगाना गलत था या आखो में आंसू छिपना गलत था
तुम्हारा नारज होना गलत था या मेरा मानना गलत था।
आखिर गलत क्या था ?

अपना दिल बहला कर देख लिया ।

जयदीप कुमार
क्या तुमने हमें आजमाकर देख लिया,
इक धोखा हमने भी खा कर देख लिया.
क्या हुआ हम हुए जो उदास,
उन्होंने तो अपना दिल बहला के देख लिया
    

आत्महत्या

जयदीप कुमार
लोग कहते हैं कि जो आत्महत्या करते है ओ वेवकूफ होते हैं पर ऐसा नही होता कोई भी मरना नही चाहता लेकिन
जब कोई बात किसी व्यक्ति की अंतरात्मा को छू जाती हैं तो वहीं से एक उत्तेजना उत्पन्न होती हैं जो सोचने और समझने की शक्ति को खत्म कर देता हैं।

सपना डांसर बनने का ।

जयदीप कुमार
बचपन से एक सपना था कि डांसर बनू इसी वजह से मैं वाराणसी में  डांस क्लास लेने लगा  लेकिन कुछ समय बाद मेरे सेहत में काफी गिरावट आने लगी।उसी समय मुझे पीलिया हो गया जिसके वजह से मैं जिला अस्पताल में मुझे एडमिट होना पड़ा जिसके वजह से मुझे काफी समय तक डांस से दूर रहना पड़ा। ठीक हो कर पुनः वाराणसी गया लेकिन डांस क्लास नही ले सका। इसी बीच मेरा एडमिशन दिल्ली विश्वविद्यालय में हो गया यहाँ पर सोचा कि कॉलेज की डांस सोसाइटी ले कर डांस सीखूंगा लेकिन जब तक मुझे डांस सोसाइटी के बारे में पता चला उससे पहले डांस का ऑडिसन हो चुका था। इस वजह से मैं डांस में तो नही हो सका लेकिन साउथ कैम्पस में ड्रामा करने लगा। दिल्ली विश्वविद्यालय के अलग - अलग कॉलेज में ड्रामा करने बाद फिर डांस वाली लाइन पर आ गया।साल बीत गया एक बार फिर से कॉलेज की डांस सोसाइटी में जाने का मौका आ गया ।अब क्या था डांस तो छूट चुकी थीं तो डांस का ऑडिशन कैसे देता तो इस लिए डांस का क्लास फिर लेने लगा ताकि डांस में मेरा सलेक्शन हो जाये। ऑडिसन हुआ मैं भी ऑडिसन देने गया जब ऑडिसन का रिजेल्ट आया तो उसमें सबसे नीचे मेरा भी नाम था। अब तो कॉलेज की डांस सोसाइटी में हो गया था तो जो मैं डांस क्लास ले रहा था उसको बन्द कर दिया।अब कॉलेज की डांस सोसाइटी में डांस कर और सीख रहा हूँ।

11 फ़रवरी 2018


कुमुद सिंह

हाउसवाइफ....सुनने में कितना साधारण लगता है ना ये शब्द और सुनने में ही क्यों..काफी लोग बल्कि पूरे पुरुष समाज में इसे साधारण ही समझा जाता है बल्कि साधारण भी नही अति साधारण।
हँसी आती है पुरुषों को यह कहते सुनकर की अरे तुम दिनभर करती ही क्या हो,घर पर ही तो रहना है आराम से।
हा हा हा..आराम से!यह शब्द सुनकर गुस्सा नही आता है बल्कि ऐसे सोच वाले लोगो पर दया आती है कि अभी तक किसी की सोच शिशु के भाँति ही है थोड़ा भी विकास नही हुआ। सच मे काफी दयनीय स्तिथि है पुरूषों की समाज मे।
कुछ दिनों से मैं सपना चमड़िया की एक किताब 'रोज वाली स्त्री' पढ़ रही हूँ।उसमें उन्होंने एक हाउसवाइफ के पूरे जीवन को बखूबी शब्दो मे उतार दिया है पर सवाल यह है कि क्या यह मालिको की कथित समाज मे बेगार हाउसवाइफ की कठिन और दूसरो के लिए समर्पित ज़िन्दगी को समझने हेतु विकसित मानसिकता है??
नहीं... वो तो अभी शिशु है..विकास आने में तो अभी काफी समय है..
#शिशु

कुमुद सिंह

हाउसवाइफ....सुनने में कितना साधारण लगता है ना ये शब्द और सुनने में ही क्यों..काफी लोग बल्कि पूरे पुरुष समाज में इसे साधारण ही समझा जाता है बल्कि साधारण भी नही अति साधारण।
हँसी आती है पुरुषों को यह कहते सुनकर की अरे तुम दिनभर करती ही क्या हो,घर पर ही तो रहना है आराम से।
हा हा हा..आराम से!यह शब्द सुनकर गुस्सा नही आता है बल्कि ऐसे सोच वाले लोगो पर दया आती है कि अभी तक किसी की सोच शिशु के भाँति ही है थोड़ा भी विकास नही हुआ। सच मे काफी दयनीय स्तिथि है पुरूषों की समाज मे।
कुछ दिनों से मैं सपना चमड़िया की एक किताब 'रोज वाली स्त्री' पढ़ रही हूँ।उसमें उन्होंने एक हाउसवाइफ के पूरे जीवन को बखूबी शब्दो मे उतार दिया है पर सवाल यह है कि क्या यह मालिको की कथित समाज मे बेगार हाउसवाइफ की कठिन और दूसरो के लिए समर्पित ज़िन्दगी को समझने हेतु विकसित मानसिकता है??
नहीं... वो तो अभी शिशु है..विकास आने में तो अभी काफी समय है..
#शिशु

भारतीय सिनेमा

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