28 अप्रैल 2019

मौसम सुहाना आ गईल - डमरू फ़िल्म सांग

फ़िल्म का पहला गाना "मौसम सुहाना आ गईल " में  खेसारी लाल यादव खेतो में लहलहाते हुए फसलो के साथ और कहीं आम के पेड़ की डाली पर बैठ कर गाना गाते नजर आ रहे हैं इस गाने में गांव के खेत - खलिहान और खेतों की हरियाली को बहुत अच्छे तरह से दिखया गया हैं यह गाना फ़िल्म को बाध लेती हैं फ़िल्म का ये गाना फ़िल्म के पहले रिलीज हो गया था ताकि दर्शक इस गाने को देख सके और फ़िल्म का एक अनुमान लगा सके कि गाना इतना अच्छा हैं तो फ़िल्म कितना अच्छा होगा। इस गाने का प्रभाव फ़िल्म पर बहुत पड़ा और फ़िल्म की लोकप्रियता को बढ़ा दिया । गाने का रिलिक्स बहुत  ही सुंदर और व्यस्थित ढंग से लिखा गया हैं। गाने के रिलिक्स अशोक कुमार "डीप" ने लिखा हैं।
जैसे -
अमवा के डरिया पर कुहू के कोयलिया, लब तराना आ गईल
 नाचे ता तन मोरा झूमता मनवा, मौसम सुहाना आ गईल
कालिया के ख़िलाला से खुशबू भरल बा,चलेला पूरबी बयरिया
भावरा बजावत बा नानकी तलइया में, लागेला हमारे सिवानवा में उठ के , ब्रज बरसाना आ गईल
नाचे ता तन मोरा झूमता मनवा, मौसम सुहाना आ गईल

फ़िल्म के गाने का रिलिक्स देख कर लगता हैं कि गाने में मौसम के बारे में भी बताया गया हैं गाने के बोल बहुत ही सुंदर तरीके से बनाया गया हैं। और गाने की म्यूजिक की बात करे तो इस गाने में म्यूजिक रजनीश मिश्रा ने दिया हैं जो फ़िल्म के निर्देशक भी हैं म्यूजिक को गाने के बोल के हिसाब से प्यारा और मधुर बनाया गया हैं जो फ़िल्म को एक नया रूप प्रदान करती हैं। फ़िल्म में खेसारी लाल यादव व यशिका  कपूर के डांस भी फ़िल्म की लोकप्रियता बढ़ाने का काम  किया हैं ।

भोजपुरी सिनेमा का इतिहास

भोजपुरी सिनेमा की शुरुआत 1960 के दशक में भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने बालीबुड अभिनेता नाजीर हुसैन से मुलाकात की और उन्होंने भोजपुरी में एक फ़िल्म बनाने के लिए कहा , नाजीर हुसैन ने सन 1963 में पहली भोजपुरी फ़िल्म गंगा मैया तोहे पीयरी चढाईबो रिलीज हुई  और भोजपुरी सिनेमा की शुरुआत हुई । यह फ़िल्म निर्णाल पिक्चर्स के बैनर के तहत  बिसननाथ प्रसाद शाहाबादी द्वारा निर्मित किया गया और कुंदन द्वारा निर्देशित थी ।
भोजपुरी फ़िल्म उघोग के रूप में 1980 के दशक में किया जाने लगा सन 1983 में हमार भाजी कल्पतरु द्वारा निर्देशक फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर कम से कम छिटपुट सफलता हासिल की।
सन 1982 में हिंदी और भोजपुरी में बनी फिल्म नदिया के पार निर्देशित गोविंद मनीष द्वारा ब्लफ मास्टर फिल्म रही। राजकुमार शर्मा द्वारा निर्देशित माई 1989 में आई अगर देखा जाए तो सन 1990 में इस भोजपुरी फिल्म उद्योग पूरी तरह से समाप्त हो गया था।
भोजपुरी फिल्म उद्योग फिर सन 2001 में शुरू हुआ मोहन प्रसाद द्वारा निर्देशित फिल्म मेरी स्वीटहार्ट जिसमें नायक रवि किशन को सुपरस्टारडम में गोली मार दी साथ मैं कई भोजपुरी सफल फिल्में आई जिसमें पंडित जी बताई ना बियाह कब होई, सन 2005 में कई फिल्में आई मुझे जब जब शादी करनी होगी, ससुरा बड़ा पैसा वाला,मेरे पास अमीर आदमी नई फिल्में भोजपुरी फिल्म उद्योग में बॉलीवुड की मुख्यधारा की फिल्में की अपेक्षा बिहार और उत्तर प्रदेश में बेहतर कारोबार किया।
ससुरा बड़ा पैसा वाला भोजपुरी सिनेमा की एक लोकप्रिय फिल्म साबित हुई जिसमें नायक मनोज तिवारी जी थे कैरियर की शुरुआत हुई।
सन 2008 में रवि किशन भोजपुरी फिल्मों के अग्रणी अभिनेता थे भोजपुरी सिनेमा की लोकप्रियता फिल्मों की बेहद तीव्र से सफलता ने नाटकीय वृद्धि को जन्म दिया साथ में उद्योग और पुरस्कार दिखाने देने का समर्थन किया और एक व्यापार पत्रिका,भोजपुरी सिटी जो उत्पादन और उसके बाद के रिलीज के बारे में बताता है
भोजपुरी सिनेमा में मुख्यधारा बॉलीवुड सिनेमा के कई प्रमुख सितारे जिसमें अभिनेता अभिताभ बच्चन और  साथ में मिथुन चक्रवर्ती भोजपुरी फिल्म भोले शंकर जो सन 2008 में रिलीज हुई उसमे साथ में काम किया । भोजपुरी सिनेमा में उस समय वह फिल्म सबसे बड़ी हिट फिल्म मानी गई सन 2008 में सिद्धार्थ गाना 21 मिनट की डिप्लोमा भोजपुरी फिल्म उडेह मना (अमक्रोवेल) को बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में विश्व प्रीमियम के लिए चुना गया था बाद में इसे बेस्ट लघु फ़िल्म फिक्शन फ़िल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला।

भोजपुरी कवि मनोज भावक ने भोजपुरी सिनेमा का इतिहास लिखा है भावत भोजपुरी सिनेमा का विश्वकोश के व्यापक रूप में  से जाना जाता है।

10 अप्रैल 2018

शायद जिंदादिली इसी को कहते हैं

प्राप्त-व्हाट्सएप्प
दिल के टूटने पर भी हंसना शायद जिंदादिली इसी को कहते हैं ,ठोकर लगने पर भी मंजिल तक भटकना शायद तलाश इसी को कहते हैं, किसी को चाह कर भी ना पाना शायद  चाहत इसी को कहते हैं,टूटे खंडहर में बिना तेल के दीए जलाना शायद उम्मीद किसी को कहते हैं,  गिर जाने पर भी फिर से खड़ा होना शायद हिम्मत इसी को कहते हैं, और ये उम्मीद, हिम्मत चाहत तलाश शायद इसी को जिंदगी कहते हैं।"..         

25 मार्च 2018

बिहार दिवस

नीरज सिंह
दिल्ली विश्वविद्यालय

बिहार से दिल्ली होखे
अउरी बैग में सतुआ के लिटी होखे
बाबू जी के दिहल कुछु पईसा होखे
ओहि पईसावा में लउकत बाबू जी के बड़का बन के आई
ई बोले वाला बतिया होखे
माई के हथवा से बुनल ऊन के सुइटर होखे
बड़का बहिनिया के बेगवा से चुराईल एगो दुगो कल्मवा होखे 
आपन गइया के दुधवा से बनल एक डब्बा घी होखे
ट्रेनवा चाहे कउनो होखे
खाली बनारस से होके दिल्ली जात होखे
लकठो ओमें बेचात होखे
दिल्ली में अइसन बात होखे
रात से सुबह तक ख़ाली अंजोरिया रात होखे
अउरी रोज दाल चावल चोखा बनत होखे
आम के आचार आपन लोटवा अमवा के पेड़वा के होखे
तब का बिहार अउर दिल्ली होखे
रोज मजा कटाई अगर अइसन बिहारी वाली बात होखे...।

काश तुम होती ।

नीरज सिंह
दिल्ली विश्वविद्यालय

काश तुम होती

सड़कों पर चलता तो हूँ
अगर तुम साथ होती तो सफ़रनामा बन जाता

सिगरेट पीने से आज-कल सभी रोकने लगे हैं मुझे
गर तुम रोकती तो बात अलग होती

चाय के साथ अक्सर धुँआ ही उड़ा रहा हूँ
अगर चाय तुम्हारे हाथों की होती तो बात कुछ और होती

याद आती हैं तुम्हारी जब हम अकेले होते हैं
साथ न छोड़ा होता तो बात ही कुछ और होती

रातों को नींद में 
दिनों में रूह में तुम ही होती हो
दूर न होती तो बात ही अलग थी

वो बात-बात पर गुस्सा होना तुम्हारा
वो गुस्सा अगर प्यार से करती तो बात ही अलग थी

वो सफ़ेद कुर्ता अभी भी पहनता हूँ
बस उस पर तुम्हारे बाहों की खुश्बू होती तो बात ही अलग थी ।

23 मार्च 2018

आपको हँसने का हुनर रखते हैं ।

जयदीप कुमार
आपके जख्मो को खरीदने का हुनर रखते है
आपके दर्द को मिटाने का हुनर रखते है.
मेरे आँखों में भले आँसुओ का सागर हो
लेकिन आपको हँसाने का हुनर रखते है.

20 मार्च 2018

हमे कही मत ढूढ़ना ।

नीरज सिंह
आज सुबह उठा तो एक बड़ा ही दुःखद समाचार सुना कि बलिया के महान कवि और लेखक अब नहीं रहें । केदारनाथ जी को पढ़ कर मैंने कविताएं लिखनी शुरू की
बहुत कुछ सीखा हैं उनसे । दरअसल वो मरे नहीं हैं हमारे बीच मे हैं हमारे यूपी के हर नोजवान की सासों में हैं आप उन्हें महसूस कर सकते हैं
उनके ऊपर कुछ लाइन लिखी हैं 😞

हमें कही मत ढूंढना
न बलिया में, न बलिया की उन प्यारी-प्यारी सड़को पर
न ही खेतों में ,  न किसी बगीचों में
न उस छत जहाँ बैठ के पूरे जग को समझा !

मैं नही मिलूँगा तुम्हें बनारस के घाटों पे
न उन में बह रहे सीतल जलो में
न उस जल पर चल रही नाव में
न बनारस के हवाओं में
और न ही उड़ रही उस आवारा पंछी में !

हमें मत ढूंढना कहि
बलिया के स्टेशन पर
वहां बने हजारी प्रसाद जी के पुस्तकालय में
स्टेशन पर बैठें किसी गरीब माँ के आँचलो में
वहाँ जो पेड़ हैं उनके सूखे पत्तों पर !

बलिया से जो सड़क बिहार जाती हैं
उस पर नहीं मिलूँगा में
गंगा जी के तीरे नहीं बैठूंगा में
निमिया के गछिया पर
रस पीने नहीं आऊंगा में !

बलिया से बनारस इसके बीच नहीं आऊँगा में
गाजीपुर में जाकर कविताएं नहीं लिखूंगा में
फेफना में धान के खेतो में नहीं उगुगा में
औड़िहार के पकौड़ो नही चखने आऊँगा में
सारनाथ में घूमते नहीं दिखूंगा में
ट्रेन चले या न चले
बलिया से बनारस के बीच उनकी हवाओं में नहीं उड़ने आऊंगा में !

बोल देना मेरे चाहने वालों को
भूल जाए हमें
में अब न आ पाउँगा
में उन्हीं में अपने आप को  छोड़ के जा रहा हूँ
वो रोए न मुझे याद करके बोलना उन्हें
उनके आँसुओ में आऊंगा में .......।

19 मार्च 2018

महाराणा प्रताप की वीरता पर श्याम नारायण पांडेय की कविता

कविता पाठ- आकाश सिंह

जिससे मैंने प्यार किया ।- प्रभात

जिससे मैनें प्यार किया , वो प्यार नही एक सपना था
प्यार के बदले धोखा दिया , इंसान कहाँ वो अपना था
रह कर उसकी यादो में देखु ,उसकी  निगाहों को
रुका खड़ा हूँ उसी राह पर  जहाँ मुझे वह छोड़ गई
उसके प्यार में पड़ कर अपनी असलियत को  भूल गया
जिससे मैन प्यार किया , वो प्यार नही एक सपना था

तुम ही मुझके ऐसे मिले, कोई और नहीं  हैं तुम्हारे जैसा
उसने तोड़ दिया रिश्ता,  खुद को समझाना कैस
सच्चे प्यार में पड़कर जाना, इतना कहां मालूम था
जिससे मैनें प्यार किया , वो प्यार नही एक सपना था

गाता गाता चल पड़ा हूँ, तन्हाई ले ख्वाबों में
प्रेम से मैंने लिख दी है, दबी हुई भावनाओं को
तुमसे ही क्यों प्यार हुआ, दिल से इतना क्यों चाहा था-

भारतीय सिनेमा

  कहा जाता है कि सिनेमा समाज का दर्पण होता है समाज की संस्कृति को बताने का एक माध्यम होता है समाज में बदलाव लाने का काम करता है वास्तव में स...