नीरज सिंह
दिल्ली विश्वविद्यालय
हा मुझे लोग शराबी समझने लगे हैं क्योंकि !
क्योंकि मुझ से नहीं होता औरो की तरह झूठा प्रेम जताना !
नहीं आता मुझ एक शब्दों का अनेक भेद बताना !
नहीं आता मुझे ऐसे आँसू बहाना
जो सिर्फ मतलब पर निकलते हैं !
नहीं आता मुझे माँ से झूठ बोलना नहीं आता पिता जी से आँख लड़ाना !
नहीं आता वो कार्य जो एक समाज से हटके हो !
नहीं आती वो रात अब जो इस दिल को बेहलती हो !
नहीं गा पाता मैं गीत तराने
नहीं केह पाता झूठे फ़साने !
मूझे नहीं आती हैं अब हर वो चीजें करनी जो मतलबी हो ।
शायद इस लिए लोग मुझे शराबी समझने लगे हैं ........!
दिल्ली विश्वविद्यालय
हा मुझे लोग शराबी समझने लगे हैं क्योंकि !
क्योंकि मुझ से नहीं होता औरो की तरह झूठा प्रेम जताना !
नहीं आता मुझ एक शब्दों का अनेक भेद बताना !
नहीं आता मुझे ऐसे आँसू बहाना
जो सिर्फ मतलब पर निकलते हैं !
नहीं आता मुझे माँ से झूठ बोलना नहीं आता पिता जी से आँख लड़ाना !
नहीं आता वो कार्य जो एक समाज से हटके हो !
नहीं आती वो रात अब जो इस दिल को बेहलती हो !
नहीं गा पाता मैं गीत तराने
नहीं केह पाता झूठे फ़साने !
मूझे नहीं आती हैं अब हर वो चीजें करनी जो मतलबी हो ।
शायद इस लिए लोग मुझे शराबी समझने लगे हैं ........!